ज्ञान कैसे पचे ?


पूज्य बापूजी :  

‘’ईश्‍वर की ओर’’ पुस्‍तक पढ़ो और जिनको ईश्‍वर मिले हैं, जैसे नारदजी है, ब्रह्माजी है उन्‍होने ईश्‍वर के स्‍वरूप के बारे में जो कहा है वो शास्‍त्रों से एकत्रित किया है, ताकि साधकों को आसानी हो जाये, ‘’नारायण स्‍तुति’’ नाम की पुस्‍तक पढ़ो । संसार का सोचने की आदत पड़ी है तो फिर भगवान के विषय में सोचने का उसमें मिला दोगे तो जैसे कांटे से कांटा निकलता है तो सोच-विचार से ही सोच-विचार बदल जायेंगे । संसार के सोच-विचारों से लड़ो मत और उनमें बहो मत, भगवान के प्रति सोच-विचार होगी । ‘’ईश्‍वर की ओर’’ पुस्‍तक पढ़ी, ‘’जीवन विकास’’ पुस्‍तक पढ़ी, महापुरूषों का जीवन-चरित्र पढ़ा, कभी रामायण, गीता आदि पढ़े तो उन्‍ही विचारों को विचारों से काटो और मोड़ दो..... बस..... और नहीं मोड़ते तो कोइ्र बात नहीं .... ओम... ओम.... हरिओम तत्‍सत...... ये सब गपशप ...... हरि....ओम..... नारायण..... हे गोविन्‍द ..... हे प्रभु.... ये आदत डाल दो बार-बार । रात को सोते समय, जैसा सोने का तरीका बताते है ऐसे सोएं और फिर पक्‍का करो कि अब मैं तो भगवान के चिंतन में ही रहूंगा । सुमिरन ऐसा कीजिये, खरे निशाने चोट मन ईश्‍वर में लीन हो, हले न जिव्‍हा होठ चिंतन करते करते फिर सुमृति हो जाती है, सुमृति हुई तो बस हो गया काम...... लब्‍ध्‍वा ज्ञानं परां शांतिं..... नष्‍टो मोह स्‍मृतिलब्‍ध्‍वा..... चिंतन तो करना पड़ता है । ये आरंभ है । चिंतन ऐसा अपनत्‍व का बन जाये कि फिर सुमिरण हो जाता है । सुमिरण हो गया तो काम बन गया, चिंतन में जरा परिश्रम करना पड़ता है, सावधानी बरतनी पड़ती है । ...... नारायण.... हरि.... ओम.... ओम... प्रभु... बार बार इस प्रकार की आदत डाल दें ।

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