सत्‍संग में निद्रा का व्‍यवधान क्‍यों होने लगता है और इसका निराकरण कैसे हो ?


श्री हरि प्रभु, चालू सत्‍संग में जब मन नि:संकल्‍प अवस्‍था में विषयों से उपराम होकर आने लगता है तो प्राय: निद्रा का व्‍यवधान क्‍यों होने लगता है और इसका निराकरण कैसे हो प्रभु ।

पूज्य बापूजी :  

निद्रा का व्‍यवधान क्‍यों होता है कि शरीर में थकान होती है तो निद्रा का व्‍यवधान होता है अथवा तो भीतर का रस नहीं मिलता है तो व्‍यवधान होता है । ...... तो इसमें निद्रा ठीक ले लो, नहीं तो थोड़ी निद्रा आती है तो डरो मत... निद्रा के बाद फिर शांत हो जाओ । व्‍यवधान नहीं है निद्रा भी..... चिंतन करते करते थोड़ा निद्रा में चले गये, थक मिटे तो फिर चिंतन में चले आओ । इतना परिश्रम नहीं करो कि साधन में बैठे कि निद्रा आ जाये और इतना जागो मत कि निद्रा की कमी रहे और इतनी निद्रा कम मत करो, इतनी निद्रा ज्‍यादा मत करो कि भगवान में शांत होने का समय न मिले । ठीक से नींद करो और ठीक से ध्‍यान-भजन का समय निकालो । रूचि भगवान में होगी, प्रीति तो निद्रा नहीं आयेगी । थकान होगी तो भी निद्रा आयेगी । थकान भी न हो, और थकान है निद्रा आती है तो अच्‍छा ही है... स्‍वास्‍थ्‍य के लिये ठीक ही है ।

Satsang ke samay nidra me vyavdhaan ho to nirkaran kaise ho download