मृत्यु के समय साक्षात्कार हो सकता है लेकिन जब आत्मा शरीर से अलग होने लगती है तो मूर्छा आ जाती है फिर साक्षात्कार कैसे होगा
पूज्य बापूजी :
देखो जिनको मूर्छा आ जाती है उनको साक्षात्कार की रूचि नहीं होती तो मूर्छा आ जायेगी । जिनको साक्षात्कार की रूचि होती है उनको मूर्छा तो क्या ? (मूर्छा आ भी गई थोड़ी देर के लिये तो वो विश्राम है, विश्राम के बाद ....... जैसे आप पढ़ते पढ़ते सो गये तो फिर जब जगते है तो पढ़ाई याद आयेगी ना........ बात करते-करते, चिंतन करते-करते सो गये.... थकान थी..... विश्राम मिला फिर...... वही दशा होगी, सोने के पहले जैसा चिंतन था, चित्त था, सोने के बाद आ जायेगा, इसमें मूर्छा क्या बिगाड़ लेगी हमारा ) भगवान का सत्संग सुना है, भगवान को अपना आत्मरूप मानते है, भगवान के नाम का जप करते है, गुरू से दीक्षा-शिक्षा लिया है तो मूर्छा भी आ गई, थकान में नींद भी आ गई तो वो निगुरी क्या बिगाड़ लेगी । घर में कुतिया आ गई तो मालिक हो गई क्या ? घर में कुतिया आ गई तो मालिक हो जायेगी क्या रसोड़े की ? चलो डरो मत........