पूज्य बापूजी :
भाव कोई न हो ...शांत ...न करता न अकर्ता , अकर्ता हूँ तो भी एक भाव है करता हूँ तो भी एक भाव है ..भाव तो भाव है भाव मन शरीर, साधक मतलब शरीर से भी परे जाए ..... भाव कुभाव प्रभाव सुभाव सब माया मात्र है ..माया मात्र इदं सर्वं ... ॐ शांति ...सभी भावों का आधार जो है उस परमात्मा में ये भाव आते जाते हैं और उसको जानने वाला नित्य परमात्मा रहते हैं ..ॐ शांति ॐ आनंद ...समता भाव समत्व योगं उच्चय्ते ...समता भाव सबसे ऊँचा योग है