यदि कोई दीक्षित साधक ,आवेश में आकर ,किसी कारण के बिना, दूसरे साधक को श्राप दे तो वो फलित होगा ?


पूज्य बापूजी :  

 श्राप  देना, देने  वाले  के  लिए  खतरे  से  खाली  नहीं  है । श्राप  देना अपनी  तपस्या  नाश  करना  है  । आवेश  में  जो  श्राप  दे  देते  हैं उनके  श्राप  में  दम  भी  नहीं  होता  ।   जितना  दमदार  हो और  हमने  गलती  की  है, वो  श्राप  दे  चाहे  न  दे,  थोड़ा  सा  उसके  हृदय  में  झटका  भी  लग  गया,  हमारे  नाराजी का,  तो   हमको  हानि  हो  जाती  है और  थोड़ा  सा  हमारे   लिए  उनके  हृदय  में  सद्‍भाव भी  आ  गया, तो   हमको  बड़ा  फायदा  मिलता  है ।

केवल  हम  उनकी  दृष्टि  के  सामने  आयें और  उनके  हृदय  में  सद्‍भाव आया  तो  हम  को  बहुत  कुछ  मिल  जाता  है ।  महापुरुषों  के  हृदय  में  तो  सद्‍भाव स्वाभाविक  होता  रहता  है  लेकिन  श्राप  तो  उनको  कभी-कभार  कहीं  आता  होगा अथवा  दुर्वासा  अवतार  कोई  श्राप  देकर  भी  लोगो  को  मोड़ने  की  कोई  लीला  हुई  तो  अलग  बात  है  ।

जरा-जरा बात  में  गुस्सा  होकर  जो  श्राप  देते  है  और  दम  मारते  है तो  आप  उस  समय  थोड़े  शांत  और  निर्भीक  रहो ।

नारायण नारायण ! 
नारायण नारायण ! नारायण नारायण !