अभ्यास में रूचि क्यों नहीं होती ?...

अभ्यास में रूचि क्यों नहीं होती ?...
15 जनवरी 1958कानपुर।
सत्संग-प्रसंग पर एक जिज्ञासु ने पूज्य बापू से प्रश्न कियाः
"स्वामीजी ! कृपा करके बताएँ कि हमें अभ्यास में रूचि क्यों नहीं होती?"
पूज्य स्वामीजीः "बाबा ! अभ्यास में तब मजा आयेगा जब उसकी जरूरत का अनुभव करोगे।
एक बार एक सियार को खूब प्यास लगी। प्यास से परेशान होता दौड़ता-दौड़ता वह एक नदी के किनारे पर गया और जल्दी-जल्दी पानी पीने लगा। सियार की पानी पीने की इतनी तड़प देखकर नदी में रहने वाली एक मछली ने उससे पूछाः
'सियार मामा ! तुम्हें पानी से इतना सारा मजा क्यों आता है? मुझे तो पानी में इतना मजा नहीं आता।'
सियार ने जवाब दियाः 'मुझे पानी से इतना मजा क्यों आता है यह तुझे जानना है?'
मछली ने कहाः ''हाँ मामा!"
सियार ने तुरन्त ही मछली को गले से पकड़कर तपी हुई बालू पर फेंक दिया। मछली बेचारी पानी के बिना बहुत छटपटाने लगी, खूब परेशान हो गई और मृत्यु के एकदम निकट आ गयी। तब सियार ने उसे पुनः पानी में डाल दिया। फिर मछली से पूछाः
'क्यों? अब तुझे पानी में मजा आने का कारण समझ में आया?'
मछलीः 'हाँ, अब मुझे पता चला कि पानी ही मेरा जीवन है। उसके सिवाय मेरा जीना असम्भव है।'
इस प्रकार मछली की तरह जब तुम भी अभ्यास की जरूरत का अनुभव करोगे तब तुम अभ्यास के बिना रह नहीं सकोगे। रात दिन उसी में लगे रहोगे।
एक बार गुरु नानकदेव से उनकी माता ने पूछाः
'बेटा ! रात-दिन क्या बोलता रहता है?'
नानकजी ने कहाः 'माता जी ! आखां जीवां विसरे मर जाय। रात-दिन मैं अकाल पुरुष के नाम का स्मरण करता हूँ तभी तो जीवित रह सकता हूँ। यदि नहीं जपूँ तो जीना मुश्किल है। यह सब प्रभुनाम-स्मरण की कृपा है।'
इस प्रकार सत्पुरुष अपने साधना-काल में प्रभुनाम-स्मरण के अभ्यास की आवश्यकता का अनुभव करके उसके रंग में रंगे रहते हैं

--- स्रोत्र :- आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तक "जीवन सौरभ" के लिया गया प्रसंग --- 

ध्यान की अवस्था में कैसे पहुंचे ?


ध्यान  की  अवस्था  में  कैसे  पहुंचे ? अगर  घर  की  परिस्थिति  उसके  अनुकूल  न  हो  तो  क्या  करे ?

पूज्य बापूजी :   




घर  की  परिस्थिति  ध्यान -भजन  के  अनुकूल  नहीं   है , इसलिए  ध्यान  न  करे ,ऐसी  बात  नहीं  है । परिस्थितियों  को  अनुकूल  बनाकर  ध्यान  नहीं  होता ,हर  परिस्थिति  में  ध्यान  का  माहौल   अथवा  सावधानी  का माहौल ,साक्षी  भाव  का माहौल ,अपने  चित्त  में  और  वातावरण  में  ज़माना  चाहिए ।   कभी -कभी  अलग  से  एकांत  में   साधना  की  जगह  पर ,आश्रम  या  एकांत  मिले ,जैसे  मौन  मंदिर  कर  लिया  8-8 दिन  के  2-4 , तो  ध्यान  का  रस  आने  से घर  के  परिस्थितियों  में  भी , वातावरण  बनाने  में  भी  बल  मिल  जायेगा । 


हम  घर  में  थे , घर  में  जो  रजो -तमो  गुण  होता  है उससे ध्यान -भजन  में  तो  बरकत  आती  नहीं , बिलकुल  सीधी  बात  है ।  किसी  संत  महापुरुष  ने  मौन  मंदिर  बनाये  थे ,तो  हम  7 दिन  उसमे  रहे  और  फिर  बड़ा  बल  मिला ।  अपने कई  आश्रमों  में  मौन  मंदिर  हैं, और  बहुत सारे  आश्रम  हमने  इसी  उद्देश्य  से  बनाये  हैं कि जो ध्यान -भजन  करना  चाहे , महीना,  15 दिन-2 महीना-4 महीना वो  अपने  एकांत  के  आश्रम  में  रहकर  कर  सकते  हैं  फिर  घर  जा  सकते  हैं ।

यदि कोई दीक्षित साधक ,आवेश में आकर ,किसी कारण के बिना, दूसरे साधक को श्राप दे तो वो फलित होगा ?


पूज्य बापूजी :  

 श्राप  देना, देने  वाले  के  लिए  खतरे  से  खाली  नहीं  है । श्राप  देना अपनी  तपस्या  नाश  करना  है  । आवेश  में  जो  श्राप  दे  देते  हैं उनके  श्राप  में  दम  भी  नहीं  होता  ।   जितना  दमदार  हो और  हमने  गलती  की  है, वो  श्राप  दे  चाहे  न  दे,  थोड़ा  सा  उसके  हृदय  में  झटका  भी  लग  गया,  हमारे  नाराजी का,  तो   हमको  हानि  हो  जाती  है और  थोड़ा  सा  हमारे   लिए  उनके  हृदय  में  सद्‍भाव भी  आ  गया, तो   हमको  बड़ा  फायदा  मिलता  है ।

केवल  हम  उनकी  दृष्टि  के  सामने  आयें और  उनके  हृदय  में  सद्‍भाव आया  तो  हम  को  बहुत  कुछ  मिल  जाता  है ।  महापुरुषों  के  हृदय  में  तो  सद्‍भाव स्वाभाविक  होता  रहता  है  लेकिन  श्राप  तो  उनको  कभी-कभार  कहीं  आता  होगा अथवा  दुर्वासा  अवतार  कोई  श्राप  देकर  भी  लोगो  को  मोड़ने  की  कोई  लीला  हुई  तो  अलग  बात  है  ।

जरा-जरा बात  में  गुस्सा  होकर  जो  श्राप  देते  है  और  दम  मारते  है तो  आप  उस  समय  थोड़े  शांत  और  निर्भीक  रहो ।

नारायण नारायण ! 
नारायण नारायण ! नारायण नारायण !

मृत्‍यु के समय साक्षात्‍कार कैसे हो सकता है ?


मृत्‍यु के समय साक्षात्‍कार हो सकता है लेकिन जब आत्‍मा शरीर से अलग होने लगती है तो मूर्छा आ जाती है फिर साक्षात्‍कार कैसे होगा

पूज्य बापूजी :  

देखो जिनको मूर्छा आ जाती है उनको साक्षात्‍कार की रूचि नहीं होती तो मूर्छा आ जायेगी । जिनको साक्षात्‍कार की रूचि होती है उनको मूर्छा तो क्‍या ? (मूर्छा आ भी गई थोड़ी देर के लिये तो वो विश्राम है, विश्राम के बाद ....... जैसे आप पढ़ते पढ़ते सो गये तो फिर जब जगते है तो पढ़ाई याद आयेगी ना........ बात करते-करते, चिंतन करते-करते सो गये.... थकान थी..... विश्राम मिला फिर...... वही दशा होगी, सोने के पहले जैसा चिंतन था, चित्‍त था, सोने के बाद आ जायेगा, इसमें मूर्छा क्‍या बिगाड़ लेगी हमारा ) भगवान का सत्‍संग सुना है, भगवान को अपना आत्‍मरूप मानते है, भगवान के नाम का जप करते है, गुरू से दीक्षा-शिक्षा लिया है तो मूर्छा भी आ गई, थकान में नींद भी आ गई तो वो निगुरी क्‍या बिगाड़ लेगी । घर में कुतिया आ गई तो मालिक हो गई क्‍या ? घर में कुतिया आ गई तो मालिक हो जायेगी क्‍या रसोड़े की ? चलो डरो मत........

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श्री आसारामायण के 108 पाठ जल्दी-जल्दी करना ठीक है ,या 5-10 पाठ अच्छे से करना उचित होगा ?


श्री आसारामायण के 108 पाठ जल्दी-जल्दी करना ठीक है ,या 5-10 पाठ अच्छे से करना उचित होगा ?


पूज्य बापूजी :   





आसारामायण का पाठ शांति से भी कर सकते है और विश्रांति पाए तो भी लाभ देते है । लेकिन ,"एक सौ आठ जो पाठ करेंगे ,उनके सारे काज सरेंगे..." कोई कारज (कार्य) की सिद्धि करनी हो ,और यह विश्वास पक्का हो तो वह (जल्दी पाठ करना ) भी ठीक है और वह (धीरे पाठ करना ) भी ठीक है ।

सत्‍संग में निद्रा का व्‍यवधान क्‍यों होने लगता है और इसका निराकरण कैसे हो ?


श्री हरि प्रभु, चालू सत्‍संग में जब मन नि:संकल्‍प अवस्‍था में विषयों से उपराम होकर आने लगता है तो प्राय: निद्रा का व्‍यवधान क्‍यों होने लगता है और इसका निराकरण कैसे हो प्रभु ।

पूज्य बापूजी :  

निद्रा का व्‍यवधान क्‍यों होता है कि शरीर में थकान होती है तो निद्रा का व्‍यवधान होता है अथवा तो भीतर का रस नहीं मिलता है तो व्‍यवधान होता है । ...... तो इसमें निद्रा ठीक ले लो, नहीं तो थोड़ी निद्रा आती है तो डरो मत... निद्रा के बाद फिर शांत हो जाओ । व्‍यवधान नहीं है निद्रा भी..... चिंतन करते करते थोड़ा निद्रा में चले गये, थक मिटे तो फिर चिंतन में चले आओ । इतना परिश्रम नहीं करो कि साधन में बैठे कि निद्रा आ जाये और इतना जागो मत कि निद्रा की कमी रहे और इतनी निद्रा कम मत करो, इतनी निद्रा ज्‍यादा मत करो कि भगवान में शांत होने का समय न मिले । ठीक से नींद करो और ठीक से ध्‍यान-भजन का समय निकालो । रूचि भगवान में होगी, प्रीति तो निद्रा नहीं आयेगी । थकान होगी तो भी निद्रा आयेगी । थकान भी न हो, और थकान है निद्रा आती है तो अच्‍छा ही है... स्‍वास्‍थ्‍य के लिये ठीक ही है ।

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ज्ञान कैसे पचे ?


पूज्य बापूजी :  

‘’ईश्‍वर की ओर’’ पुस्‍तक पढ़ो और जिनको ईश्‍वर मिले हैं, जैसे नारदजी है, ब्रह्माजी है उन्‍होने ईश्‍वर के स्‍वरूप के बारे में जो कहा है वो शास्‍त्रों से एकत्रित किया है, ताकि साधकों को आसानी हो जाये, ‘’नारायण स्‍तुति’’ नाम की पुस्‍तक पढ़ो । संसार का सोचने की आदत पड़ी है तो फिर भगवान के विषय में सोचने का उसमें मिला दोगे तो जैसे कांटे से कांटा निकलता है तो सोच-विचार से ही सोच-विचार बदल जायेंगे । संसार के सोच-विचारों से लड़ो मत और उनमें बहो मत, भगवान के प्रति सोच-विचार होगी । ‘’ईश्‍वर की ओर’’ पुस्‍तक पढ़ी, ‘’जीवन विकास’’ पुस्‍तक पढ़ी, महापुरूषों का जीवन-चरित्र पढ़ा, कभी रामायण, गीता आदि पढ़े तो उन्‍ही विचारों को विचारों से काटो और मोड़ दो..... बस..... और नहीं मोड़ते तो कोइ्र बात नहीं .... ओम... ओम.... हरिओम तत्‍सत...... ये सब गपशप ...... हरि....ओम..... नारायण..... हे गोविन्‍द ..... हे प्रभु.... ये आदत डाल दो बार-बार । रात को सोते समय, जैसा सोने का तरीका बताते है ऐसे सोएं और फिर पक्‍का करो कि अब मैं तो भगवान के चिंतन में ही रहूंगा । सुमिरन ऐसा कीजिये, खरे निशाने चोट मन ईश्‍वर में लीन हो, हले न जिव्‍हा होठ चिंतन करते करते फिर सुमृति हो जाती है, सुमृति हुई तो बस हो गया काम...... लब्‍ध्‍वा ज्ञानं परां शांतिं..... नष्‍टो मोह स्‍मृतिलब्‍ध्‍वा..... चिंतन तो करना पड़ता है । ये आरंभ है । चिंतन ऐसा अपनत्‍व का बन जाये कि फिर सुमिरण हो जाता है । सुमिरण हो गया तो काम बन गया, चिंतन में जरा परिश्रम करना पड़ता है, सावधानी बरतनी पड़ती है । ...... नारायण.... हरि.... ओम.... ओम... प्रभु... बार बार इस प्रकार की आदत डाल दें ।

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मुक्‍ति और आत्‍मसाक्षात्‍कार में क्या फर्क है ?

मुक्‍ति और आत्‍मसाक्षात्‍कार एक ही है या अलग-अलग है

पूज्य बापूजी :   



मुक्‍त का मतलब है बंधनों से मुक्‍त होना और दुखों से मुक्‍त होना । दुखों से मुक्‍त.... आत्‍मसाक्षात्‍कार के बिना हुआ नहीं जाता । परमात्‍मा की प्राप्‍ति कहो, मुक्‍ति कहो एक ही बात है । मुक्‍ति भी पांच प्रकार की होती है – यहां से मर गये, स्‍वर्ग में चले गये, इसको स्‍वर्गीय मुक्‍ति कहते है । ठाकुरजी का भजन करके ठाकुरजी के देश में चले गये वो सायुज्‍य मुक्‍ति होती है । ठाकुरजी के नजदीक रहे तो सामीप्‍य मुक्‍ति । और नजदीक हो गये मंत्री की नाईं........ सायुज्‍य मुक्‍ति, सामीप्‍य मुक्‍ति....... लेकिन वास्‍तविक में पूर्ण मुक्‍ति होती है कि जिसमें ठाकुरजी जिस आत्‍मा में, मैं रूप में जगे है उसमें अपने आप को जानना.... ये जीवनमुक्‍ति होती है .... जीते-जी यहां होती है । दूसरी मुक्‍ति मरने के बाद होती है .... स्‍वर्गीय मुक्‍ति, सालोक्‍य मुक्‍ति, सामीप्‍य मुक्‍ति, सायुज्‍य मुक्‍ति, सारूप्‍य मुक्‍ति । इष्‍ट के लोक में रहना सालोक्‍य मुक्‍ति है । उनका चपरासी अथवा द्वारपाल जितनी नजदीकी लाना सायुज्‍य मुक्‍ति है । सामीप्‍य मुक्‍ति .... उनका खास मंत्री अथवा भाई की बराबरी । जैसे रहते है राजा का भाई ऐसे हो जाना भक्‍ति से सारूप्‍य मुक्‍ति । इन मुक्‍तियों में द्वैत बना रहता है । ये अलग है, मैं अलग हूँ और ये खुश रहें । उनके जैसा सुख-सुविधा, अधिकार भोगना, ये सालोक्‍य, सामीप्‍य मुक्‍तियां है और पूर्ण मुक्‍ति है कि अपनी आत्‍मा की पूर्णता का साक्षात्‍कार करके यहीं......... पूर्ण गुरूकृपा मिली, पूर्ण गुरू के ज्ञान में अनंत ब्रह्माण्‍डव्‍यापी अपने चैतन्‍य स्‍वभाव से एकाकार होना........ ये जीवनमुक्‍ति है, परममुक्‍ति है । मुक्‍तियों के पांच भेद है – यहां से मरकर स्‍वर्ग में गये, चलो मुक्‍त हो गये । वहां राग-द्वेष भी ज्‍यादा नहीं होता, और कम होता है लेकिन फिर भी इधर से तो बहुत अच्‍छा है । ....तो हो गये मुक्‍त । जैसे कर्जे से मुक्‍त हो गये, झगड़े से मुक्‍त हो गये । तलाक दे दिया, झंझट से मुक्‍त हो गये, ऐसी मुक्‍तियां तो बहुत है लेकिन पूर्ण परमात्‍मा को पाकर, बाहर से सुखी होने क बदले सत में, चित में, आनंद में स्‍थिति हो गई वो है पूर्ण मोक्ष........... इसको जीवन्‍मुक्‍ति बोलते है, कैवल्‍यमुक्‍ति बोलते है ।

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माया का स्वरुप क्या और कैसे बचें ?


माया का स्वरुप क्या और कैसे बचें ?

पूज्य बापूजी :  

मा या , जो दिखे और टिके नहीं ये माया का स्वरुप है जो बदल जाता है .... जो दीखता है वो स्वप्ना है और परमात्मा अपना है परमात्मा प्राप्ति की इच्छा से माया से बचता है , भगवान की सरन ह्रदय पूर्वक जाने से माया से बचता है

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ध्यान के समय कैसा भाव होना चाहिए ?

ध्यान के समय कैसा भाव होना चाहिए ? करता भाव या द्रष्टा भाव ?



पूज्य बापूजी :    

भाव कोई न हो ...शांत ...न करता न अकर्ता , अकर्ता हूँ तो भी एक भाव है करता हूँ तो भी एक भाव है ..भाव तो भाव है भाव मन शरीर, साधक मतलब शरीर से भी परे जाए ..... भाव कुभाव प्रभाव सुभाव सब माया मात्र है ..माया मात्र इदं सर्वं ... ॐ शांति ...सभी भावों का आधार जो है उस परमात्मा में ये भाव आते जाते हैं और उसको जानने वाला नित्य परमात्मा रहते हैं ..ॐ शांति ॐ आनंद ...समता भाव समत्व योगं उच्चय्ते ...समता भाव सबसे ऊँचा योग है


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भगवान ने जगत क्‍यों बनाया ?


पूज्य बापूजी :    



ये संसार भगवान ने पुजवाने के लिये नहीं बनाया, जैसे नेता वोट बैंक के लिये अपने एरिया में घूमता है ऐसे भगवान सृष्‍टि करके अवतार लेकर वोट बैंक के लिये नहीं आते अथवा वोट बैंक के लिये भगवान ने ये सृष्‍टि नहीं बनाई । भगवान ने आपको गुलाम बनाने के लिये भी सृष्‍टि नहीं बनार्इ । भगवान ने आपको अपने अलौकिक आनंद, माधुर्य, ज्ञान और प्रेमाभक्‍ति के द्वारा अपने से मिलने के लिये सृष्‍टि बनाई । भगवान परम प्रेमास्‍पद है । बिछड़े हुए जीव अपने स्‍वरूप से मिले इसलिये सृष्‍टि है । वो सृष्‍टि में अनुकूलता देकर, योग्‍यता देकर आपको उदार बनाता है कि इस योग्‍यता का आप ‘‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’’ सदुपयोग करो और प्रतिकूलता, विघ्‍न-बाधा देकर आपको सावधान करता है कि संसार तुम्‍हारा घर नहीं है । ये एक पाठशाला है, यहां से आप यात्रा करके मुझ परमेश्‍वर से मिलने आये हो । इसलिये दुख भी भेजता है । दुख सदा नहीं रहता और सुख भी सदा नहीं रहता । धरती का कोई व्‍यक्‍ति सुख को टिकाये रखे, संभव ही नहीं । दुख को टिकाये रखो, संभव नहीं है क्‍योंकि उसकी व्‍यवस्‍था है । सुख भी आकर तुम्‍हे उदार और परोपकारी बनाने का संदेश देता है । आप सुख के भोगी हो जाते हो तो रावण का रास्‍ता है और सुख को ‘’बहुजन हिताय’’ बांटते हो तो रामजी का रास्‍ता है । सुख को अपना भोग बनाते हो तो कंस का रास्‍ता है और सुख को बहुतों के लिये काम में लाते हो तो कृष्‍ण का रास्‍ता है । ऐसे ही दुख आया तो आप दुख के भोगी मत बनो । दुख आया है तो आपको पाठशाला में सिखाता है कि आप लापरवाही से उपर उठो, आप संसारी स्‍वाद से उपर उठें । संसारी स्‍वाद लेकर आपने कुछ ज्‍यादा खाया है तो बीमारी रूपी दुख आता है अथवा वाहवाही में आप लगे तो विघ्‍न और निंदा रूपी दुख आता है लेकिन वाहवाही में नहीं लगे फिर भी महापुरूषों के लिये कई कई उपद्रव पैदा होते है ताकि समाज को सीख मिले कि महापुरूषों के उपर इतने-इतने उपद्रव आते है, अवतारों पर इतने उपद्रव आते है पर वो मस्‍त रहते है, सम रहते है तो हम काहे को डिगें? हम काहे को घबरायें? ये व्‍यवस्‍था है । कृष्‍ण पर लांछन आये, रामजी पर लांछन आये, बुद्ध पर लांछन आये, कबीरजी पर आये, धरती पर ऐसा कोई सुप्रसिद्ध महापुरूष नहीं हुआ जिन पर लांछन की बौछार न पड़ी हो ।

काम विकार से कैसे बचें ?

काम विकार जब जब आता है तो अच्छे तरीके से गिरा देता है | इससे बचने का उपाय बताये |


पूज्य बापूजी :   

सर्वांग आसन करो और मूलबंध करो सर्वांग आसन करके ताकि वो जो वीर्य बनता है वो ऊपर आये मस्तक में शरीर में और मजबूती करे |

प्राणायाम कस के करो सवा मिनट अंदर श्वास रोके और चालीस सेकण्ड बाहर श्वास रोके. और आवले के चूर्ण में २० प्रतिशत हल्दी मिलाकर ३-३ ग्राम सेवन करो .युवाधन पुस्तक पढ़ा करो |

शादी नहीं किया है तो पहले ईश्वर प्राप्ति करके फिर संसार में जाओ अथवा तो खाली होकर मरो फिर जन्मो तुम्हारी मर्जी की बात है |

मुक्‍ति और आत्‍मसाक्षात्‍कार में क्या फर्क है ?

मुक्‍ति और आत्‍मसाक्षात्‍कार एक ही है या अलग-अलग है

पूज्य बापूजी :    

मुक्‍त का मतलब है बंधनों से मुक्‍त होना और दुखों से मुक्‍त होना । दुखों से मुक्‍त.... आत्‍मसाक्षात्‍कार के बिना हुआ नहीं जाता । परमात्‍मा की प्राप्‍ति कहो, मुक्‍ति कहो एक ही बात है । मुक्‍ति भी पांच प्रकार की होती है – यहां से मर गये, स्‍वर्ग में चले गये, इसको स्‍वर्गीय मुक्‍ति कहते है । ठाकुरजी का भजन करके ठाकुरजी के देश में चले गये वो सायुज्‍य मुक्‍ति होती है । ठाकुरजी के नजदीक रहे तो सामीप्‍य मुक्‍ति । और नजदीक हो गये मंत्री की नाईं........ सायुज्‍य मुक्‍ति, सामीप्‍य मुक्‍ति....... लेकिन वास्‍तविक में पूर्ण मुक्‍ति होती है कि जिसमें ठाकुरजी जिस आत्‍मा में, मैं रूप में जगे है उसमें अपने आप को जानना.... ये जीवनमुक्‍ति होती है .... जीते-जी यहां होती है । दूसरी मुक्‍ति मरने के बाद होती है .... स्‍वर्गीय मुक्‍ति, सालोक्‍य मुक्‍ति, सामीप्‍य मुक्‍ति, सायुज्‍य मुक्‍ति, सारूप्‍य मुक्‍ति । इष्‍ट के लोक में रहना सालोक्‍य मुक्‍ति है । उनका चपरासी अथवा द्वारपाल जितनी नजदीकी लाना सायुज्‍य मुक्‍ति है । सामीप्‍य मुक्‍ति .... उनका खास मंत्री अथवा भाई की बराबरी । जैसे रहते है राजा का भाई ऐसे हो जाना भक्‍ति से सारूप्‍य मुक्‍ति । इन मुक्‍तियों में द्वैत बना रहता है । ये अलग है, मैं अलग हूँ और ये खुश रहें । उनके जैसा सुख-सुविधा, अधिकार भोगना, ये सालोक्‍य, सामीप्‍य मुक्‍तियां है और पूर्ण मुक्‍ति है कि अपनी आत्‍मा की पूर्णता का साक्षात्‍कार करके यहीं......... पूर्ण गुरूकृपा मिली, पूर्ण गुरू के ज्ञान में अनंत ब्रह्माण्‍डव्‍यापी अपने चैतन्‍य स्‍वभाव से एकाकार होना........ ये जीवनमुक्‍ति है, परममुक्‍ति है । मुक्‍तियों के पांच भेद है – यहां से मरकर स्‍वर्ग में गये, चलो मुक्‍त हो गये । वहां राग-द्वेष भी ज्‍यादा नहीं होता, और कम होता है लेकिन फिर भी इधर से तो बहुत अच्‍छा है । ....तो हो गये मुक्‍त । जैसे कर्जे से मुक्‍त हो गये, झगड़े से मुक्‍त हो गये । तलाक दे दिया, झंझट से मुक्‍त हो गये, ऐसी मुक्‍तियां तो बहुत है लेकिन पूर्ण परमात्‍मा को पाकर, बाहर से सुखी होने क बदले सत में, चित में, आनंद में स्‍थिति हो गई वो है पूर्ण मोक्ष........... इसको जीवन्‍मुक्‍ति बोलते है, कैवल्‍यमुक्‍ति बोलते है ।

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4 of 4 Vedas, Maha Mantra - 4 वेदों के 4 महा मंत्र


1) दुनिया में 4 संस्कृतीयां अती प्राचीन है …मिस्र, युनान, रोम और भारत…मिस्र, युनान और रोम की संस्कृति को तो धर्मांतरण वालों ने कुचल के अजायब घर में रख दिया…अब एक संस्कृति बची है प्राचीन..जीजस के बाद इसायत चली..मोहमद के बाद इस्लाम चला…लेकिन ये संस्कृतियाँ उस से बहुत प्राचीन है..उन में अपना वजूद है..अब इन में से केवल भारतीय संस्कृति प्राचीन बची है..और भारत संस्कृति में 4 वेद है..ये ज्ञान सुन ... your child to explain to neighborhood girls ..
4 Vedas in India is Snkriti .. these 4 Vedas chant, prayer, worship was a lot of treasure-filled .. the 1 Veda, Vedvyas law that created 4 Department of 4 Vedas: Rigveda, Yajurveda, Atharvan Veda, Sam Veda.
4 of the 4 Vedas, the Maha Mantra ..
a)प्रज्ञानम ब्रम्ह : तुम्हारी बुध्दी के गहेराई में जो बैठा है वो परब्रम्ह परमात्मा है…उस परमात्मा का ज्ञान अथवा उस परमात्मा में शांत होना, उस परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए कर्म करना सारे विकासों की कुंजी है..सारे सुखों की कुंजी है .. .. It is the knowledge of all Jञanon of all Mnglon is Tue.
b) Ayn Brahma Spirit: Ayn spirit of the Veda, Brahma .. where is your 'I' 'I own your soul that God is there .. you have no body, just like you my - brother, who also dresses Phente तो तुम कपड़े नही हो ऐसे ही तुम को ये जो स्री का चोला मिला है अथवा पुरुष का चोला मिला है वो यहा मरने के बाद भी तुम रहेते हो..
c) ego Brmhasmi: I see .. the third is in the Vedas I am Brahma self.
d) Ttwmsi: The fourth Veda is the word .. the capacity for happiness, salvation, God calls you, you have that element, that element is not different from you .. as wave water search, explaining the दे की तू तरंग नही तू ही मूल में पानी है ..अपने को झाग, बुलबुला, तरंग मानना छोड़ दे तो तुम स्वयं समुद्र है ऐसे ही अपने को शरीर, मन, इंद्रिया, फलाना जातीवाला मानना छोड़ दे तो मूल में जो सर्व व्यापक परमात्मा That is your soul ..
If you do not ever die, the body will remain even after you die. God does not kill you, why is the divine and your soul. God is not separate from you, is not far from you, not rare for you is.
Get it .. shabri Gurukripa knowledge of the sage Matanga, Mirabai from the Rhidas, Shandili got from his Gurudev ..Without knowledge of the master, the pride of Ravana and Hirnykshypu penance after 60 years as the king could not find the knowledge .. not killed at the end badly ...

Lord Krishna addresses: the four Vedas, which is the echo of Om it is my soul, it's me ...
(Pujysri Bapuji said the divine glory om)

Indian culture is still strong in yourself .. Why is this in the Omkar, the 4 Vedas, 18 mythology ..
Despite many efforts to crush our culture who is shining .. where Hindu culture still remain a Hindu has 5-25 of them Rhen - Shen, wise - festival, life - Cham Cham culture in diffusion is shining .. 

2) Why is linking pain and knee pain? He had not digested in the body and ate raw juice is made up .. raw juices made form the air along with air and the raw juice of the common causes of knee pain, the pain becomes shoulders ..
Add to that the pain, knee pain, shoulders pain they go Listen: -
- While eating together .. Have a glass of lukewarm water drops put in that little Adrak Saunth powder or drink it between meals do .. do ..
Take Arndia oil -100 gms, 80 gms Lhhesun put code in it ... .. Lhhesun boil Burn .. oil will remain the place that sometimes massage the pain .. the pain will fade away, will rest.
- 15 minutes every morning the sun's rays on the body lying on stomach and back Sit down .. It will destroy the particles of many kinds of diseases ..
Rome's culture was a tremendous good for 600 years there a Doctor, doctor, medicine, injections did not trouble. People take bath in the morning sun Kirno 15 minutes .. Take the medical measures Kirno sun ..

3) Pujysri Bapuji story of the long-seasoned sage.
http://wp.me/P6Ntr-Qc   long hard ऋsi

4) Bramri with throat chanting Omkar Pranayama increase the memory power, backing the melody comes, will find success in devotional meditation, hyper thyroid, hypo thyroid will not ..


5) Pujysri Bapuji Catyany the sacred kirtan of Mahaprabhu who shed the laundry section of the story and the story of Haridas ..
6) are the gift of human laughter, the joy and health, 84 million species ... not have any such laughter. It Bapuji Pujysri ban on laughter in the Ramrajya enjoy the story of Ramayana.

http://wp.me/P6Ntr-Oq   Ramrajya ban on laughter Ban On Laugh in RaamRaajya!

7) Plut of Om to pronounce every 15 minutes someone in life that will change in a few days .. but 15 minutes will then have to take care of: -
- It's inside you by chanting a spiritual Ora (power) will cause .. why not sit on the floor No, not the sit .. fat plain cloth ones, good ones are plastic - and the power of the Ku Kulmila - Driver's seat should be ... conducted ... Arthing not get an ..Blankets are spread - Pyuar cotton, imitation blankets over the life of you will not .. so ..
I'm in my room Phenta wash the slippers, or bare feet if you are laying carpet roam .. not sure if I moved to Phen SOCKS ..So Arthing found .. Arthing to meet you the faith, strength and Ora .. she will go to Earth
ये ज्ञान गुरुओं के द्वारा मिलता है..मनमानी साधना कोई 12 साल करें तो भी इतना लाभ नही होगा…मैं दीक्षा देता हूँ और मैं जो साधना बताऊँ वो रोज आधा आधा घंटा केवल 12 हफ़्ता करे तो भी 12 साल वाले से मेरा साधक आगे निकल will!
Pujysri Bapuji explained the benefits of the mantra initiation.
http://wp.me/P6Ntr-xl    33 Benefits of Mantra initiation

4 of 4 Vedas, Maha Mantra - 4 वेदों के 4 महा मंत्र


1) दुनिया में 4 संस्कृतीयां अती प्राचीन है …मिस्र, युनान, रोम और भारत…मिस्र, युनान और रोम की संस्कृति को तो धर्मांतरण वालों ने कुचल के अजायब घर में रख दिया…अब एक संस्कृति बची है प्राचीन..जीजस के बाद इसायत चली..मोहमद के बाद इस्लाम चला…लेकिन ये संस्कृतियाँ उस से बहुत प्राचीन है..उन में अपना वजूद है..अब इन में से केवल भारतीय संस्कृति प्राचीन बची है..और भारत संस्कृति में 4 वेद है..ये ज्ञान सुन ... your child to explain to neighborhood girls ..
4 Vedas in India is Snkriti .. these 4 Vedas chant, prayer, worship was a lot of treasure-filled .. the 1 Veda, Vedvyas law that created 4 Department of 4 Vedas: Rigveda, Yajurveda, Atharvan Veda, Sam Veda.
4 of the 4 Vedas, the Maha Mantra ..
a)प्रज्ञानम ब्रम्ह : तुम्हारी बुध्दी के गहेराई में जो बैठा है वो परब्रम्ह परमात्मा है…उस परमात्मा का ज्ञान अथवा उस परमात्मा में शांत होना, उस परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए कर्म करना सारे विकासों की कुंजी है..सारे सुखों की कुंजी है .. .. It is the knowledge of all Jञanon of all Mnglon is Tue.
b) Ayn Brahma Spirit: Ayn spirit of the Veda, Brahma .. where is your 'I' 'I own your soul that God is there .. you have no body, just like you my - brother, who also dresses Phente तो तुम कपड़े नही हो ऐसे ही तुम को ये जो स्री का चोला मिला है अथवा पुरुष का चोला मिला है वो यहा मरने के बाद भी तुम रहेते हो..
c) ego Brmhasmi: I see .. the third is in the Vedas I am Brahma self.
d) Ttwmsi: The fourth Veda is the word .. the capacity for happiness, salvation, God calls you, you have that element, that element is not different from you .. as wave water search, explaining the दे की तू तरंग नही तू ही मूल में पानी है ..अपने को झाग, बुलबुला, तरंग मानना छोड़ दे तो तुम स्वयं समुद्र है ऐसे ही अपने को शरीर, मन, इंद्रिया, फलाना जातीवाला मानना छोड़ दे तो मूल में जो सर्व व्यापक परमात्मा That is your soul ..
If you do not ever die, the body will remain even after you die. God does not kill you, why is the divine and your soul. God is not separate from you, is not far from you, not rare for you is.
Get it .. shabri Gurukripa knowledge of the sage Matanga, Mirabai from the Rhidas, Shandili got from his Gurudev ..Without knowledge of the master, the pride of Ravana and Hirnykshypu penance after 60 years as the king could not find the knowledge .. not killed at the end badly ...

Lord Krishna addresses: the four Vedas, which is the echo of Om it is my soul, it's me ...
(Pujysri Bapuji said the divine glory om)

Indian culture is still strong in yourself .. Why is this in the Omkar, the 4 Vedas, 18 mythology ..
Despite many efforts to crush our culture who is shining .. where Hindu culture still remain a Hindu has 5-25 of them Rhen - Shen, wise - festival, life - Cham Cham culture in diffusion is shining .. 

2) Why is linking pain and knee pain? He had not digested in the body and ate raw juice is made up .. raw juices made form the air along with air and the raw juice of the common causes of knee pain, the pain becomes shoulders ..
Add to that the pain, knee pain, shoulders pain they go Listen: -
- While eating together .. Have a glass of lukewarm water drops put in that little Adrak Saunth powder or drink it between meals do .. do ..
Take Arndia oil -100 gms, 80 gms Lhhesun put code in it ... .. Lhhesun boil Burn .. oil will remain the place that sometimes massage the pain .. the pain will fade away, will rest.
- 15 minutes every morning the sun's rays on the body lying on stomach and back Sit down .. It will destroy the particles of many kinds of diseases ..
Rome's culture was a tremendous good for 600 years there a Doctor, doctor, medicine, injections did not trouble. People take bath in the morning sun Kirno 15 minutes .. Take the medical measures Kirno sun ..

3) Pujysri Bapuji story of the long-seasoned sage.
http://wp.me/P6Ntr-Qc   long hard ऋsi

4) Bramri with throat chanting Omkar Pranayama increase the memory power, backing the melody comes, will find success in devotional meditation, hyper thyroid, hypo thyroid will not ..


5) Pujysri Bapuji Catyany the sacred kirtan of Mahaprabhu who shed the laundry section of the story and the story of Haridas ..
6) are the gift of human laughter, the joy and health, 84 million species ... not have any such laughter. It Bapuji Pujysri ban on laughter in the Ramrajya enjoy the story of Ramayana.

http://wp.me/P6Ntr-Oq   Ramrajya ban on laughter Ban On Laugh in RaamRaajya!

7) Plut of Om to pronounce every 15 minutes someone in life that will change in a few days .. but 15 minutes will then have to take care of: -
- It's inside you by chanting a spiritual Ora (power) will cause .. why not sit on the floor No, not the sit .. fat plain cloth ones, good ones are plastic - and the power of the Ku Kulmila - Driver's seat should be ... conducted ... Arthing not get an ..Blankets are spread - Pyuar cotton, imitation blankets over the life of you will not .. so ..
I'm in my room Phenta wash the slippers, or bare feet if you are laying carpet roam .. not sure if I moved to Phen SOCKS ..So Arthing found .. Arthing to meet you the faith, strength and Ora .. she will go to Earth
ये ज्ञान गुरुओं के द्वारा मिलता है..मनमानी साधना कोई 12 साल करें तो भी इतना लाभ नही होगा…मैं दीक्षा देता हूँ और मैं जो साधना बताऊँ वो रोज आधा आधा घंटा केवल 12 हफ़्ता करे तो भी 12 साल वाले से मेरा साधक आगे निकल will!
Pujysri Bapuji explained the benefits of the mantra initiation.
http://wp.me/P6Ntr-xl    33 Benefits of Mantra initiation

Rishi Prasad

Rishi Prasad A priceless treasure for your library. Started in 1990, Rishi Prasad has now become the largest circulated spiritual monthly publication in the world with more than 10 million readers.

The magazine is a digest of all thought provoking latest discourses of His Holiness Asharam Bapu on various subjects directing simple solutions for a peaceful life. The magazine also features news on happenings at various ashrams in past month, inspirational texts from scriptures/legends , practical tips for healthy day-to-day living balancing materialism by idealism, Bapujis answers to questions raised by seekers, disciples experiences etc. 

Details of upcoming courses and events are also listed in every issue. This is a wonderful gem that keeps one close to Bapuji always. This Journal teaches the principles of Vedas, Puran and Upnishads in a very simple and pragmatic way and its articles appeal to people of all religions, ages, caste-creed, gender and social stratus. The magazine focuses on areas like spiritualism, culture, yoga and tradition.

At the age of 70+ even, Asharam Bapuji is travelling across the length and breadth of India imparting spiritual knowledge to awaken the mankind and bring solace to the troubled souls. Rishi Prasad (his message to entire humanity) which started with just hindi language is now being published in multiple languages like English, Gujarati, Marathi, Kannada, Telugu, Oriya, Sindhi and Devanagari-hindi to reach the remotest corner of the country.
In the interest of easier and wider reach of all masses across the globe, under the guidance of Pujya Bapuji,online subscription and electronic edition of Rishi Prasad is launched at the auspicious outset of the New Year.

The mission of this launch is to give a flexible and anytime access of a magazine which unbundles the secret of how to live a good life in a world full of stress, fear , despair and anxiety. Reading even a single page will give a new insight to approach life with a right attitude.

We are accustomed to gifting people for their birthdays, anniversaries or just as a token of the love that we feel for them. Most of us would love to gift our loved ones something unique and meaningful. If you already a member of this magazine and have benefitted by reading its articles, spread its fragrance to your near ones on their special days. To contribute to the humanity as a whole, you can pass on the subscription of this book on your special days too. This would give you a real value of money rather than spending on transient gifts. 

Thousand of candles can be lit from a single candle, so share this candle as much as you can to illuminate the world. Keep abreast with the latest developments and activities of the ashram with enlightening gems of wisdom by Pujya Bapuji with just a click now.